Computer memory प्रकार और विशेषताएं : कम्प्यूटर की मैमोरी किसी कम्प्यूटर के उन अवयवों, साधनों तथा रिकॉर्ड करने वाले माध्यमों को कहा जाता है जिनमें प्रोसेसिंग में उपयोग किए जाने वाले अंकीय डाटा (Digital data) को किसी समय तक रखा जाता है। कम्प्यूटर मैमोरी आधुनिक कम्प्यूटरों के मूल कार्यों में से एक अर्थात् सूचना स्टोरेज (Information storage) की सुविधा प्रदान करती है।
वास्तव में, मैमोरी कम्प्यूटर का वह भाग है, जिसमें सभी डाटा और प्रोग्राम स्टोर किए जाते हैं। यदि यह भाग न हो, तो कम्प्यूटर को दिया जाने वाला कोई भी डाटा तुरन्त नष्ट हो जाएगा। यह कम्प्यूटर के सीपीयू का एक भाग होती है और उससे मिलकर सम्पूर्ण कम्प्यूटर बनाती है। मैमोरी को क्षमता मेगाबाइट में मापी जाती है।
मैमोरी के प्रकार
मैमोरी को दो भागों में बाँटा गया है:
- प्राथमिक मैमोरी (प्राइमरी मैमोरी) या मेन मैमोरी।
- द्वितीयक मैमोरी (सेकेण्डरी मैमोरी) या ऑक्जीलरी मैमोरी।
प्राथमिक मैमोरी (Primary Memory)
प्राथमिक मैमोरी को मुख्य मैमोरी (Main Memory) या आंतरिक मेमोरी (Internal Memory) भी कहा जाता है, क्योंकि यह कंप्यूटर के सीपीयू का ही भाग होती है। कंप्यूटर के इस भाग में क्रियान्वयन (execution) के लिए डाटा तथा प्रोग्राम के निर्देश संग्रहित रहते है। जब सीपीयू किसी प्रोग्राम का क्रियान्वयन (execution) कर रहा होता है तो उस प्रोग्राम से संबंधित डाटा तथा निर्देशों का प्राथमिक मैमोरी में होना आवश्यक होता है। सीपीयू किसी भी प्रोग्राम क्रियान्वयन (execution) के लिए आवश्यक डाटा तथा निर्देशों को केवल प्राथमिक मैमोरी से ही प्राप्त करता है। यदि यह डाटा तथा निर्देश प्राथमिक मेमोरी में ना होकर कहीं और हो (जैसे कि द्वितीयक मैमोरी में) तो पहले ये डाटा तथा निर्देश प्राथमिक मैमोरी में स्थानांतरित किए जाते हैं। तत्पश्चात ही सीपीयू किसी प्रोग्राम के क्रियान्वयन (execution) के लिए इनका प्रयोग कर सकता है। इस मैमोरी का आकार सीमित होता है, परन्तु इसकी गति बहुत तेज होती है, ताकि जब भी किसी डाटा की जरूरत हो, इसमें से तुरन्त लिया जा सके।
प्राइमरी मैमोरी को दो भागों में बाँटा जा सकता है
- रैण्डम एक्सेस मैमोरी (Random Access Memory, RAM)
- रीड ओनली मैमोरी (Read Only Memory, ROM)
रैण्डम एक्सेस मैमोरी (Random Access Memory, RAM)
इसको रैण्डम एक्सेस मैमोरी इसलिए कहा जाता है, क्योंकि इसके द्वारा कम्प्यूटर डाटा को किसी भी क्रम या Order में संगृहीत कर सकता है तथा उसे पुनः भी प्राप्त कर सकता है। यह मैमोरी एक चिप की तरह होती है, जो मैटल ऑक्साइड सेमीकण्डक्टर (MOS) से बनी होती है। रैम में किसी भी स्थान से डाटा पढ़ने में समान समय लगता है। इसको रोड/राइट मैमोरी (Read/ Write Memory) भी कहा जाता है, क्योंकि इस पर उपलब्ध डाटा को लिखा व पढ़ा भी जा सकता है। यह अस्थायी (Volatile) स्मृति होती है क्योंकि विद्युत सप्लाई के बन्द होने के पश्चात् इसमें संगृहीत डाटा को पुनः प्राप्त नहीं किया जा सकता है। हमारे द्वारा दिया गया डाटा सर्वप्रथम रैम में जाकर ही संगृहीत होता है।
यह सबसे ज्यादा उपयोग में आने वाली स्मृति या मैमोरी है। कम्प्यूटर में यह मैमोरी जितनी अधिक होगी, कंप्यूटर उतना ही तीव्र गति से और अधिक काम करने वाला होगा।
रैम दो प्रकार की होती है
- डायनैमिक रैम (Dynamic RAM)
- स्टैटिक रैम (Static RAM)
डायनैमिक रैम (Dynamic RAM)
इसे डी रैम (D RAM) भी कहते हैं। डी रैम चिप के स्टोरेज सेल परिपथों (Circuits) में एक ट्रांजिस्टर लगा होता है जो ठीक उसी प्रकार कार्य करता है जिस प्रकार कोई ऑन/ऑफ स्विच कार्य करता है और इसमें एक कैपेसिटर (Capacitor) भी लगा होता है जो एक विद्युत चार्ज को स्टोर कर सकता है। डायनैमिक रैम किसी डाटा को पढ़ने में 60 नैनो सेकण्डस का समय लेती है
डी रैम को बार-बार रिफ्रेश (Refresh) किया जाता है, जिसके कारण इसकी गति धीमी हो जाती है। इस प्रकार डायनैमिक रैम चिप ऐसी मैमोरी की सुविधा देता है, जिसकी सूचना बिजली बन्द करने पर नष्ट हो जाती है। डी रैम के निम्नलिखित उदाहरण है
- एस डी रैम (SDRAM- Synchronous Dynamic RAM)
- आर डी रैम (RDRAM- Rambus Dynamic RAM)
- डी डी आर एस डी रैम (DDR SDRAM – Double Data Rate Synchronous Dynamic RAM)
स्टैटिक रैम (Static RAM)
इसे एस रैम (SRAM) भी कहते हैं। इसमें डाटा तब तक संचित रहता है जब तक विद्युत सप्लाई ऑन (ON) रहती है। स्टैटिक रैम में स्टोरेज सेल परिपथों में एक से अधिक ट्रांजिस्टर्स लगे होते हैं। इसमें कैपेसिटर नहीं लगा होता। स्टैटिक रैम अधिकतर (उसकी तेज गति के कारण) कैश मैमोरी की तरह उपयोग किया जाता है। स्टैटिक रैम किसी डाटा को पढ़ने में 10 नैनो- सेकण्ड्स का समय लेती है। डायनैमिक रैम की तुलना में स्टैटिक रैम अधिक महँगी होती है। एस रैम के निम्नलिखित उदाहरण है:
- नॉन-वॉलेटाइल एस रैम (Non-Volatile SRAM)
- स्पेशल एस रैम (Special SRAM)
- एसिंक्रोनस एस रैम (Asynchronous SRAM)
- सिंक्रोनस एस रैम (Synchronous SRAM)
रीड ओनली मैमोरी (Read Only Memory, ROM)
इसे ‘रीड ओनली मैमोरी’ इसलिए कहा जाता है, क्योंकि इस पर लिखे गए निर्देश केवल पढ़े जा सकते हैं, लिखे या मिटाए अथवा संशोधित नहीं किए जा सकते। यह स्थायी (Non-volatile) स्मृति होती है अर्थात् इस पर संगृहीत डाटा विद्युत सप्लाई बन्द होने के पश्चात् भी नष्ट नहीं होता है तथा उसको पुनः प्राप्त किया जा सकता है। इसका प्रयोग बाओस [Basic Input Output System (BIOS)] की जानकारी को संगृहीत करने के लिए किया जाता है। इस पर लिखे गए प्रोग्राम को ‘फर्मवेयर’ (Firmware) भी कहते हैं, जो कम्प्यूटर का स्विच ऑन (On) होने के साथ ही क्रियान्वित हो जाता है। इसमें संगृहीत प्रोग्राम के द्वारा ही बूटिंग (Booting) के समय ऑपरेटिंग सिस्टम रैम में स्थानान्तरित हो जाता है।
रोम में निर्देशों को संगृहीत करने के लिए एक विशेष प्रक्रिया की आवश्यकता होती है, जो प्रयोगकर्त्ता या प्रोग्रामर द्वारा नहीं की जाती। कम्प्यूटर निर्माण करने वाली कम्पनी इसमें इलेक्ट्रिक सिग्नल्स अथवा पराबैगनी किरणों के प्रयोग से डाटा का संग्रहण करती है। रोम का उपयोग सभी प्रकार के इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों, जैसे कैलकुलेटर, वीडियो गेम, डिजिटल कैमरा आदि में किया जाता है।
रोम तीन प्रकार की होती है:
- प्रोग्रामेबल रीड ओनली मैमोरी (Programmable Read Only Memory, PROM)
- इरेजेबल प्रोग्रामेबल रीड ओनली मैमोरी (Erasable Programmable Read Only Memory, EPROM)
- इलेक्ट्रिकली इरेजेबल प्रोग्रामेबल रीड ओनली मैमोरी (Electrically Erasable Programmable Read Only Memory, EEPROM)
प्रोग्रामेबल रीड ओनली मैमोरी (Programmable Read Only Memory, PROM)
यह एक ऐसी मैमोरी है, जिसमें एक प्रोग्राम की सहायता से सूचनाओं को स्थायी रूप से स्टोर किया जाता है। जब इस मैमोरी में कोई सूचना भरनी होती है, तो एक उपकरण जिसे पी रोम प्रोग्रामर (PROM Programmer) या बर्नर (Burner) कहा जाता है, द्वारा ऐसी उच्च वोल्टेज के पल्स उत्पन्न किए जाते हैं, जिनसे कुछ चुने हुए स्विच नष्ट हो जाते हैं अर्थात् वे स्विच 1 से 0 हो जाती हैं। इस पर प्रोग्राम लिखने की क्रिया बर्निंग (Burning) कहलाती है। पी रोम मैमोरी को भी केवल एक बार ही प्रोग्राम द्वारा भरा जा सकता है। रोम की तरह यह भी स्थायी होती है और बाद में इसे बदला नहीं जा सकता । इसे मैग्नेटिक स्टोरेज भी कहते हैं।
इरेजेबल प्रोग्रामेबल रीड ओनली मैमोरी (Erasable Programmable Read Only Memory, EPROM)
यह एक ऐसी पी रोम मैमोरी है जिसको फिर से प्रोग्राम किया जा सकता है लेकिन इस पर पुनर्लेखन की प्रक्रिया जटिल है। इस पर लिखे प्रोग्राम को मिटाने के लिए समस्त सैलों पर पराबैंगनी (Ultra-violet) प्रकाश डाला जाता है और समस्त सैलों के डाटा नष्ट करने के पश्चात् ही पुनर्लेखन सम्भव है। इसकी सूचनाओं को चिप में ही रखी गई विद्युत धारा के द्वारा स्थायी रखा जाता है। ई पी रोम में भरी हुई सूचनाएँ भी स्थायी होती हैं, क्योंकि कम्प्यूटर को ऑफ कर देने के बाद भी वे नष्ट नहीं होती।
इलेक्ट्रिकली इरेजेबल प्रोग्रामेबल रीड ओनली मैमोरी (Electrically Erasable Programmable Read Only Memory, EEPROM)
यह एक ऐसी मैमोरी है, जिसको फिर से प्रोग्राम करने के लिए सर्किट से हटाने और निर्माता को भेजने की आवश्यकता नहीं होती। इसे एक विशेष सॉफ्टवेयर या प्रोग्राम की सहायता से कम्प्यूटर में ही प्रोग्राम किया जा सकता है। इसमें प्राय: कम्प्यूटर के कॉनफिग्रेशन से सम्बन्धित सूचनाएँ रखी जाती हैं। इस मैमोरी का सबसे बड़ा गुण इसका स्थायी (Non-volatile) होना है और यह आसानी से update की जा सकती है। यह मैमोरी महँगी है तथा डाटा व निर्देशों को इस पर लिखने में समय भी अधिक लगता है।
द्वितीयक मैमोरी (Secondary Memory)
कम्प्यूटर की कार्य करने की गति तब ही तेज हो सकती है जब कम्प्यूटर में प्राथमिक मैमोरी अधिक हो। इसका कारण यह है कि समस्त डाटा व निर्देश प्राथमिक मैमोरी से ही सी० पी० यू० पर जाते हैं, किन्तु यह मैमोरी अत्यधिक महँगी होती है इसीलिए कम्प्यूटर में प्राथमिक मैमोरी की मात्रा सीमित होती है। इसके अलावा यह अस्थायी भी होती है।
कम्प्यूटर में प्रयुक्त की जाने वाली प्राथमिक स्मृति कम्प्यूटर के समस्त डाटा को संगृहीत नहीं कर सकती है, अतः अत्यधिक डाटा को स्टोर करने में द्वितीयक स्मृति का प्रयोग किया जाता है। इस प्रकार की मैमोरी सीपीयू से बाहर होती है, इसीलिए इसे सहायक (Auxiliary) तथा बाह्य (External) मैमोरी भी कहते हैं।
यह प्राथमिक मैमोरी की तुलना में काफी सस्ती होती है परन्तु इसकी गति प्राथमिक मैमोरी की तुलना में कम होती है। यह स्थायी (Permanent) मैमोरी है अर्थात् विद्युत सप्लाई बन्द होने के पश्चात् भी इसमें संगृहीत डाटा नष्ट नहीं होता तथा उसको पुनः प्राप्त किया जा सकता है। इसमें संगृहीत डाटा को प्राथमिक मैमोरी में आवश्यकता अनुसार भेजा जा सकता है। द्वितीयक स्मृति विभिन्न युक्तियों (Devices) के रूप में मिलती है। द्वितीयक स्मृति को ही भण्डारण युक्ति भी (Secondary Storage Device) भी कह सकते हैं।
द्वितीयक स्मृति के प्रमुख गुण निम्नलिखित हैं-
- यह डाटा को स्थायी रूप से संगृहीत कर सकती है।
- यह प्राथमिक स्मृति या मैमोरी की तुलना में बहुत सस्ती है।
- असीमित डाटा भण्डारण की क्षमता होती है।
- संगृहीत डाटा को आवश्यकतानुसार परिवर्तित किया जा सकता है।
- ये बार-बार प्रयोग में लाई जा सकती हैं।
- इसकी सहायता से डाटा को सुगमता से स्थानान्तरित किया जा सकता है।
कुछ मुख्य सेकेण्डरी स्टोरेज डिवाइसों का विवरण निम्नलिखित है:
- हार्ड डिस्क ड्राइव (Hard Disk Drive)
- फ्लॉपी डिस्क (Floppy Disk)
- मैग्नेटिक टेप (Magnetic Tape)
- कॉम्पैक्ट डिस्क (Compact Disc, CD)
- डिजिटल विडियो डिस्क (Digital Video Disc, DVD)
- ब्लू-रे डिस्क (Blu-Ray Disc, BD)
- पेन ड्राइव (Pen Drive)
- मैमोरी कार्ड (Memory Card)
हार्ड डिस्क ड्राइव (Hard Disk Drive)
इन्हें फिक्स्ड डिस्क भी कहा जाता है। कम्प्यूटर सीधे हार्ड डिस्क से सम्पर्क करता है। ये कई आकारों और क्षमताओं में मिलती हैं, लेकिन इनकी बनावट तथा कार्यप्रणाली लगभग एक ही होती है। कोई हार्ड डिस्क (Hard disk) एक ही धुरी पर लगी हुई कई वृत्ताकार चुम्बकीय डिस्कों का समूह होता है।
इसमें एक स्पिडल शामिल होता है जो नॉन-चुम्बकीय फ्लैट सर्कुलर डिस्क को रखता है, जिसे प्लैटर्स (Platters) कहा जाता है जो रिकॉर्ड किए गए डाटा को होल्ड रखता है। प्रत्येक प्लैटर के लिए दो रीड / राइट हैड की आवश्यकता होती है जो प्लैटर से सूचना को पढ़ने तथा लिखने के लिए उपयोग किए जाते हैं। सभी रीड/राइट हैड सिंगल या एकल एक्सेस आर्म से जुड़े होते हैं इसलिए वे स्वतन्त्र रूप से मूव नहीं कर सकते।
इसमें सूचना बैण्ड में रिकॉर्ड की जाती है, सूचना के प्रत्येक बैण्ड को ट्रैक कहा जाता है। टैक 0 सबसे भीतरी ट्रैक होता है। ट्रैक को पाई आकार वाले वर्गों विभाजित किया जाता है, जिन्हें सेक्टर्स (Sectors) कहा जाता है।
आधुनिक हार्ड डिस्कों की क्षमता 200 गीगाबाइट तक होती है। पर्सनल कम्प्यूटरों के लिए विशेष प्रकार की हार्ड डिस्क भी उपलब्ध है, जिन्हें विंचेस्टर डिस्क कहा जाता है। इनकी क्षमता 20 गीगाबाइट से 80 गीगाबाइट तक होती है। ये धूल आदि के प्रति बहुत संवेदनशील होती हैं, जिसके कारण इनको एक डिब्बे में स्थायी रूप से बन्द रखा जाता है और सिस्टम यूनिट के भीतर लगा दिया जाता है।
हार्ड डिस्क ड्राइव के प्रकार (Types of Hard Disk Drive)
हार्ड डिस्क ड्राइव में लगे हैड के आगे- पीछे कर सकने तथा न कर सकने के आधार पर, दो प्रकार की हार्ड डिस्क ड्राइव होती हैं-
- स्थायी हैड (Fixed Head)
- गतिशील हैड (Movable Head)
फ्लॉपी डिस्क (Floppy Disk)
यह डिस्क माइलर की बनी हुई एक वृत्ताकार डिस्क होती है, जिसके दोनों ओर एक चुम्बकीय पदार्थ का लेप चढ़ा होता है। यह एक प्लास्टिक के चौकोर कवर में संरक्षित रहती है, जिसके भीतर फ्लॉपी की सफाई करने वाली मुलायम लाइनें होती हैं। फ्लॉपी डिस्क (Floppy disk) को डिस्कीटी (Diskette), फ्लापी या केवल डिस्क नाम से भी जाना जाता है, यह तीन आकारों (Sizes) में उपलब्ध होती हैं। फ्लॉपी डिस्क पर कोई सूचना लिखने या उसे पढ़ने के लिए एक विशेष उपकरण की आवश्यकता होती है, जिसे फ्लॉपी डिस्क ड्राइव (Floppy Disk Drive या FDD) कहा जाता है।
मैग्नेटिक टेप (Magnetic Tape)
ये पुरानी फाइलों का बैकअप लेने के बहुत सुरक्षित और सस्ते साधन माने जाते हैं। मैग्नेटिक टेप (Magnetic tape) प्रारम्भ से ही कम्प्यूटरों में प्रयोग किए जाते रहे हैं और अभी भी इनका उपयोग किया जाता है। इन टेपों की विश्वसनीयता (Reliability) बहुत अधिक होती है और ये सैकड़ों वर्षों तक भी सुरक्षित रह सकते हैं।
चुम्बकीय टेप काफी धीमा होता है, क्योंकि यह एक क्रमिक (Sequential) माध्यम है। इसका अर्थ यह है कि इसमें डाटा लिखने या पढ़ने का कार्य एक सिरे से दूसरे सिरे तक क्रमशः किया जाता है। हम बीच से लिखना पढ़ना शुरू नहीं कर सकते । धूल, धूप व नमी से यह खराब हो सकती है या संगृहीत डाटा को क्षति पहुँच सकती है। चुम्बकीय टेप पर डाटा पढ़ने व लिखने का कार्य एक उपकरण के माध्यम से किया जाता है जिसे टेप ड्राइव कहते हैं। इसकी क्षमता 40 मेगाबाइट से 100 मेगाबाइट तक होती है।
कॉम्पैक्ट डिस्क (Compact Disc, CD)
यह एक विशेष प्रकार की डिस्क होती है, जिन पर डाटा प्राय: एक बार ही लिखा जाता है और फिर उसे कितनी बार भी पढ़ सकते हैं। यह एक प्रकार की रीड ओनली मैमोरी ही है। इनमें प्राय: ऐसी सूचनाएँ स्टोर की जाती हैं जो स्थायी प्रकृति की हों तथा जिनकी आवश्यकता बार-बार पड़ती हो, जैसे टेलीफोन डायरेक्टरी, हवाई जहाजों की उड़ानों की समय-सारणी, पुस्तकालय की पुस्तकों की सूची (Catalogue), कानूनी सूचनाएँ, फिल्म आदि।
इन पर डाटा लिखने-पढ़ने के लिए लेजर (Light Amplification by Stimulated Emission of Radiation, LASER) तकनीक का प्रयोग किया जाता है। इसलिए इन्हें ऑप्टिकल डिस्क भी कहा जाता है। एक सी डी की स्टोरेज क्षमता 680 मेगाबाइट से 800 मेगाबाइट तक होती है। इसे प्राय: 1200 किलोबाइट प्रति सेकण्ड की गति से पढ़ा जाता है। इसमें से सूचनाएँ पढ़ने के लिए जिस ड्राइव को उपयोग में लाया जाता है, उसे सी डी रोम ड्राइव कहा जाता है।कॉम्पैक्ट डिस्क (Compact Disk-CD) का प्रयोग सामान्यतया कम्प्यूटरों के साथ ही किया जाता है, क्योंकि सभी प्रकार के प्रोग्राम आजकल सीडी पर ही उपलब्ध होते हैं।
सी० डी० को तीन भागों में विभाजित किया जाता हैं
- सीडी-रोम (कॉम्पैक्ट डिस्क रीड ओनली मैमोरी)
- सीडी-आर (कॉम्पैक्ट डिस्क – रिकॉर्डेबल)
- सीडी-आर डब्लयू (कॉम्पैक्ट डिस्क – रिराइटेबल)
सी० डी० निम्नलिखित दो प्रकार की होती है-
- रीड ओनली सी०डी०
- रीड / राइट सी०डी०
रीड ओनली सी०डी०
इसको रीड ओनली सी०डी० इसलिए कहा जाता है, क्योंकि इस प्रकार की सी०डी० को सिर्फ पढ़ा जा सकता है इनमें किसी भी प्रकार का परिवर्तन नहीं किया जा सकता।
रीड/राइट सी०डी०
इसमें डाटा को पढ़ने के अलावा अनेक बार लिखा भी जा सकता है। डाटा लिखने के लिए एक विशेष युक्ति सी०डी० राइटर (CD-Writer) का प्रयोग किया जाता है।
डिजिटल विडियो डिस्क (Digital Video Disc, DVD)
आजकल सीडी का एक अन्य परिष्कृत रूप भी प्रयोग में लाया जाता है जिसे डीवीडी (DVD-Digital Video Disk) कहा जाता है। इनकी स्टोरेज क्षमता 2 गीगाबाइट या अधिक भी हो सकती है। इस पर डाटा लिखने या उसे पढ़ने के लिए एक विशेष ड्राइव होता है, जिसे डीवीडी ड्राइव कहा जाता है। इसे डिजिटल वर्सेटाइल डिस्क या डिजिटल वीडियो डिस्क के रूप में भी जाना जाता है, एक ऑप्टिकल डिस्क स्टोरेज मीडिया फॉर्मेट है और इसे वर्ष 1995 में, सोनी, पैनासोनिक और सैमसंग द्वारा विकसित किया गया था। इसका मुख्य उपयोग वीडियो और डाटा का स्टोरेज करना है। DVD का आकार कॉम्पैक्ट डिस्क (CD) के समान ही होता है, लेकिन ये छह गुना अधिक तक डाटा भण्डारण करते हैं।
डीवीडी को तीन भागों में विभाजित किया जाता है
- डीवीडी-रोम (डिजिटल वीडियो डिस्क-रीड ओनली मैमोरी)
- डीवीडी-आर (डिजिटल वीडियो डिस्क – रिकॉर्डेबल)
- डीवीडी-आर डब्ल्यू (डिजिटल वीडियो डिस्क-रिराइटेबल)
ब्लू-रे डिस्क (Blu-Ray Disc, BD)
एक ऑप्टिकल डिस्क संग्रहण माध्यम है, जिसे मानक DVD प्रारूप का स्थान लेने के लिए बनाया गया है। ब्लू-रे डिस्क (Blu-ray Disk-BD) का नाम इसे पढ़ने में प्रयुक्त नीले- बैंगनी (Blue-Violet) लेजर से लिया गया है। एक मानक डीवीडी में 650 नैनोमीटर लाल लेजर का प्रयोग किया जाता है, जबकि ब्लू-रे डिस्क कम तरंगदैर्ध्य का प्रयोग करती है, 400 नैनोमीटर वाला नीला-बैंगनी लेजर तथा एक डीवीडी की तुलना में लगभग दस गुना अधिक डाटा संग्रहण की अनुमति देती है।
मुख्य रूप से इसका प्रयोग उच्च परिभाषा वाले वीडियो (High Definition Video), प्लेस्टेशन 3 (Playstation 3), वीडियो गेम्स तथा अन्य डाटा को, प्रत्येक एकल परत वाले प्रोटोटाइप पर 25 GB तक और दोहरी परत वाले पर 50 GB तक संग्रहीत करने के लिए किया जाता है।
ब्लू-रे डिस्क विभिन्न फॉर्मेट में उपलब्ध हैं
- BD-ROM (केवल पढ़ने के लिए)
- BD-R (रिकॉर्डेबल)
- BD-RW (रिराइटेबल)
- BD-RE (रिराइटेवल)
पेन ड्राइव (Pen Drive)
यह पैन के आकार में उपलब्ध एक प्रकार की भण्डारण युक्ति है। जो लगभग 128 MB डाटा को संगृहीत कर सकती है। इस युक्ति का सबसे बड़ा लाभ यह है कि छोटे आकार के कारण एक स्थान से दूसरे स्थान तक आसानी से ले जायी जा सकती है तथा कम्प्यूटर के साथ प्रयोग करने के लिए इसे सिर्फ यूएसबी (USB) पोर्ट के साथ संलग्न करना पड़ता है।
आजकल बाजार में अधिकतर प्लग एण्ड प्ले (Plug and Play) पर आधारित पैन ड्राइव उपलब्ध हैं जिन्हें कम्प्यूटर पर इन्सटॉल नहीं करना पड़ता है। ये सभी प्रकार के ऑपरेटिंग सिस्टमों पर एक समान रूप से कार्य कर सकती हैं।
मैमोरी कार्ड (Memory Card)
यह एक प्रकार का मैमोरी कार्ड होता है। ये एक USB आधारित मैमोरी ड्राइव है। इसका आकार 50.0 × 21.5 × 2.8 मिमी होता है तथा इसकी स्टोरेज क्षमता (Storage capacity) 4 MB से 256 GB तक़ होती है।
प्राथमिक और सेकेंडरी मेमोरी के बीच अंतर Difference between Primary and Secondary Memory
प्राइमरी मेमोरी | सेकेंडरी मेमोरी |
प्राथमिक मेमोरी प्रोसेसर/सीपीयू द्वारा सीधे पहुंच योग्य है। | सीपीयू द्वारा सेकेन्डरी मेमोरी सीधे पहुंच योग्य नहीं है। |
वर्तमान में निष्पादित होने वाले निर्देशों या डेटा को मुख्य मेमोरी में कॉपी किया जाता है। | स्थायी रूप से संग्रहीत किए जाने वाले डेटा को सेकेन्डरी मेमोरी में रखा जाता है। |
प्राथमिक मेमोरी के कुछ हिस्सों की प्रकृति भिन्न होती है रैम- प्रकृति में वोलाटाईल । रोम- नॉन वोलाटाईल | | यह हमेशा प्रकृति में नॉन-वोलाटाईल होता है। |
प्राथमिक मेमोरी आमतौर पर वोलाटाईल होती है। | सेकेन्डरी मेमोरी नॉन-वोलाटाईल है। |
प्राथमिक मेमोरी सेमीकन्डक्टर से बनती हैं। | सेकेन्डरी मेमोरी चुंबकीय और ऑप्टिकल मटेरियल से बनी होती हैं। |
प्राथमिक मेमोरी से डेटा एक्सेस करना तेज है। | सेकेन्डरी मेमोरी से डेटा एक्सेस करना धीमा है। |
प्राथमिक मेमोरी को मुख्य मेमोरी या आंतरिक मेमोरी के रूप में भी जाना जाता है। | सेकेन्डरी मेमोरी को एक्सटर्नल मेमोरी या ऑक्सिलरी मेमोरी के रूप में भी जाना जाता है। |
कंप्यूटर में एक छोटी प्राथमिक मेमोरी होती है। | कंप्यूटर में एक बड़ी सेकेन्डरी मेमोरी होती है । |
प्राथमिक मेमोरी डिवाइस सेकेन्डरी मेमोरी उपकरणों की तुलना में अधिक महंगे हैं। | प्राथमिक मेमोरी डिवाइस की तुलना में सेकेन्डरी मेमोरी डिवाइस कम महंगे होते हैं। |
उदाहरण रैम, रोम, कैच मेमोरी, पीरोम, इपीरोम, रजिस्टर, आदि । | उदाहरण हार्ड डिस्क, फ्लॉपी डिस्क, मैग्नेटिक टेप, आदि । |